निःशब्द
एल आर गाँधी
अनादि काल से हम स्वर्गाभिलाषी रहे हैं ...... ऋषि -मुनियों ने वर्षों तपस्या की स्वर्ग की प्राप्ति के लिए। वनों में भटके ,वट वृक्षों की छाओं में प्रभु भक्ति में लीन ..... न खाने की सुध न सांसारिक जीवन का मोह ..... पर्वत शिखिर , कंदराओं , गुफाओं , आकाश -पाताल एक कर दिया ! बस स्वर्ग मिल जाए ! महर्षि विश्वामित्र की घोर तपस्या से तो इंद्र भी घबरा गए .... आखिर तपस्या भंग करने परम रूपसी अप्सरा मेनका को भेजा ..... ऋषिवर धोका खा गए ! हमारे जैसे तुच्छ प्राणियों की तो भला औकात ही क्या है !
कहते हैं स्वर्ग के सिंहासन पर वर्षा के देवता इंद्र 'आरूढ़ 'हैं ...सदैव मृगनयनी अप्सराओं से घिरे रहते हैं ..... नयनो से छलकती मस्ती और सोम रस का सरूर ,मृदंग और वीणा के मधुर स्वरों पर थिरकती लावण्यमयी -मृगनयनी अप्सराएं .... कौन नहीं चाहेगा ऐसे मादक सोम -सरोवर में डूब जाना।
अपनी आँखों के समंदर में उतर जाने दो !
तेरा कातिल हूँ , मुझे डूब के मर जाने दो !!
हूरें तो जन्नत में भी हैं , मगर महज़ ७२ और साथ में २८ लौंडे भी .... आबे हयात है जिसमें शराब बहती है ..... मजे कितने ही लूटो , थकने का सवाल ही नहीं .... कितना ही खाओ ! ग़ुस्ल की कोई हाज़त नहीं ! बस जेहाद करना होगा ! दारुल इस्लाम के लिए ! जेहाद में मारे जाओगे तो जन्नत का एयर टिकट पक्का ,नो बुकिंग ,नो वीज़ा
हमको मालूम है ,जन्नत की हकीकत लेकिन !
दिल के बहलाने को ग़ालिब यह ख्याल अच्छा है !!
अरे भई ! कहाँ भटक रहे हो सदियों पुराने स्वर्ग और जन्नत के खावों ख्यालों में ! माडर्न ऋषि मुनि : आज के साइंसदानों ने आप की ख्वाब गाह बोले तो बैड -रूम में जन्नत और स्वर्ग मुहैया करवा दिया है ...... गर्मी है तो ए सी चला लो .... सर्दी तो ब्लोअर .... स्काच विस्की या फिर बीअर की बोतल खोलो ! टी वि ऑन करो ...' मन पसंद ' चैंनल लगाएं। इतनी सूंदर अप्सराएं कि हूरें उनके आगे पानी भरें !
जिसमें लाखों बरस की हूरें हों !
ऐसी जन्नत को क्या करे कोई !!