अष्टावक्र गीता
एल आर गांधी
ज्ञानी मृत्यु के समय भी हँसता है , मूढ़ ज़िंदा रहते भी रोता है। ज्ञानी के पास कुछ नहीं होते भी आनंदित रहता है , अज्ञानी के पास सब कुछ होते हुए भी दुःखी रहता है। ज्ञानी कर्म को भी खेल समझता है , अज्ञानी खेल को भी कर्म समझता है। ज्ञानी संसार को भी नाटकवत् समझता है किन्तु अज्ञानी नाटक और स्वपन को भी भी वास्तविकता समझता है . ज्ञानी व् अज्ञानी के कर्मों में समानता होते हुए भी दृष्टि में अंतर है।
(अष्टावक्र गीता ४/१)