बुधवार, 6 जुलाई 2011

ऐश्वर्य के प्रतीक ईश्वर के असहाय भक्त !!!!



ऐश्वर्य के प्रतीक ईश्वर के असहाय भक्त !!!!

        एल.आर.गाँधी

पदमनाभ स्वामी मंदिर की अकूत धनसंपदा के बारे में जब से नए नए रहस्योद्घाटन  हुए जा रहे हैं.---धीरे धीरे यह भी स्पष्ट होता जा रहा है कि हिन्दुओं के इश्वर यदि ऐश्वर्य के प्रतीक हैं तो भक्त भिखारी   का .....हो भी क्यों न ..केवल भिखारी  ही ईश्वर की कल्पना में जीवन पर्यंत ऐश्वर्य के प्रतीक की उपासना -भक्ति में कष्टमय जीवन जी सकता है , 
पदमनाभ स्वामी मंदिर ने आज तक विश्व के सबसे कुबेर धर्मस्थल तिरुपति बाला जी को पीछे  छोड़ दिया है. पदमनाभ स्वामी मंदिर ट्रावन्कोर के  प्राचीन राजशाही परिवार का मंदिर है और मंदिर का प्रबंधन भी राज परिवार के हाथ में है. अपनी अकूत धनराशी को सरकार की नज़रों से छिपाने के लिए हो सकता है ,राज परिवार ने मंदिर को कवच की भांति इस्तेमाल किया हो. 
यह हिन्दुओं की ईश्वर के प्रति आगाध आस्था का ही परिणाम है कि हिन्दुओं के धरम स्थल विश्व भर में ऐश्वर्य और भव्यता के प्रतीक के रूप में जाने जाते रहे हैं. आस्थावान धन - कुबेर हिन्दुओं ने ईश्वर के ऐश्वर्य को इन भव्य मंदिरों के रूप में निर्मित किया और ब्राह्मणों  को पूजा अर्चना के लिए सौंम्प दिया और धीरे धीरे ये पुजारी ही इन विशाल देवालयों के देवता स्वरुप मालिक बन बैठे. मंदिरों के दान पात्र से अपनी विलासता की सामग्री जुटाने लगे. हिन्दू समाज या धरम के  कल्याण- प्रसार  से इन्हें कुछ लेना देना न था. सदियों से इन देवालयों की आड़ में यह पुजारी वर्ग आस्थावान हिन्दू समाज का शोषण और इमोशनल अत्याचार करता आ रहा है. 

इस्लाम के आगमन काल से ये भव्य देव स्थल  इस्लामिक ज़ेहादिओं के निशाने पर रहे हैं. गौरी,अब्दाली, खिलज़ी जैसे सैंकड़ों मुस्लिम आक्रान्ताओं ने मंदिरों को लूटा और मिस्मार किया. फिर भी हिन्दुओं की आस्था में कोई कमी नहीं देखने को मिली - मगर किसी धर्माचार्य ने इन देवालयों की धन संपदा को इनकी और हिन्दू समाज की हिफाज़त के लिए सदुपयोग की नहीं सोची. मुस्लिम मज़हब के रहनुमा इस लूट के धन को मज़हब को फ़ैलाने और मज़बूत करने पर खर्च करते . चर्च ने तो अपनी सेना और शस्त्रागार तक बना रखे थे. इस्लाम और चर्च की दो तरफ़ा मार सह रहा हिन्दू धर्म और समाज आज भी इन धर्म के ठेकेदार मठाधीशों  के आगे बेबस है. इतिहास गवाह है कि हमारे इन धर्म के ठेकेदारों ने कभी भी अपने धर्म और समाज की रक्षा और कल्याण के लिए कुछ नहीं किया. 
अहमदशाह अब्दाली ने जब सिखों के 'मक्का'  हरमंदिर साहेब को मिस्मार करने के लिए हमला किया तो २२ सिंह हरि-मंदिर की रक्षा करते हुए शहीद हो गए. हिन्दुओं के हजारों मंदिर मुगलों  द्वारा लूटे और गिराए  गए, मगर किसी भी मठाधीश या पांडे ने अपने देव स्थान की रक्षा करते  हुए जान   नहीं दी.  अब्दाली ने हिन्दुओं के पवित्र  धरम स्थल मथुरा -वृन्दावन और गोकुल के पवित्र  मंदिरों को ही नहीं तोडा बल्कि एक हिन्दू के सिर की कीमत ५/- रूपए लगा दी . अफगान सैनिकों ने मासूम हिन्दू बच्चों के सरों के ढेर लगा दिए . मथुरा के पांडे मंदिरों को छोड़ भाग खड़े हुए. सिर्फ नांगा साधुओं ने अफगान सैनिको का सामना किया और बहुत से सैनिक मार गिराए . 
आन्ध्र और केरल की सेकुलर सरकारों के अधीन मंदिरों की कमाई - ईसाई और मुसलमानों के धार्मिक कार्यों पर खर्च की जाती है. यदि यह मंदिर भी सरकार के आधीन आ गया तो इसकी अकूत दौलत भी ये सेकुलर शैतान वोट बैंक की बलि चढ़ा देंगे. प्रमुख साधू संतो और हिन्दू संगठनों को मंदिरों की इस सम्पदा को हिन्दू धर्म के उत्थान और हिन्दू समाज के उपेक्षित वर्ग के कल्याण के लिए खर्च करने की व्यवस्था निश्चित करनी चाहिए.