रविवार, 1 अगस्त 2010

एक और शाह बानों ..चुप हैं सेकुलर शैतान ...

एक और शाह बानो ....चुप हैं सेकुलर शैतान...
सेकुलर भारत के सेकुलर शैतानो से एक और शाह बानों को इन्साफ की दरकार है !३२ साल पहले इंदौर मध्य प्रदेश की ६२ वर्षीय शाह बनो ने इन्साफ के लिए उच्चतम न्यायालय का दरवाज़ा खट खटाया और न्यायालय ने उसकी फरियाद को सुना भी मगर केंद्र की सेकुलर कांग्रस सरकार ने मुस्लिम कट्टर पंथियों के दवाब में ,क़ानून में बदलाव कर -'इन्साफ का गला काट दिया' और शाह बानों और उसके पांच बच्चों को उनके मौलिक अधिकार 'गुज़ारा भत्ता' से वंचित कर दिया.
अब एक और शाह बनो अपने मौलिक अधिकारों के लिए मैदान में आई है. यह है सीरिन मिडिया ... २४ वर्षीया सीरिन मिडिया कोलकता की अलिआह यूनिवर्सिटी में गेस्ट लेक्चरार है. इस यूनिवर्सिटी को हाल ही में बंगाल की बुध देव सेकुलर सरकार ने अल्पसंख्यक स्टेटस से नवाज़ा है. यहाँ की स्टुडेंट यूनियन ने फरमान जारी किया की कोई भी महिला लेक्चरार बिना 'डिसेंट' कपड़ों के पढ़ाने न आए -अर्थात कोई भी मुस्लिम महिला लेक्चरर बिना बुर्के के क्लास रूम में प्रवेश न करे ! ७ टीचरों ने तो फरमान का पालन किया और बुर्के में 'तालिबान' को पढ़ाना सवीकार लिया,मगर सीरिन ने इस तालिबानी फरमान को मानने से इनकार कर दिया. पिछले तीन माह से सीरिन कैम्पस से बाहर स्थित लाईब्ररी में बैठ कर चली जाती है . सीरिन ने इस तालिबानी फरमान के विरुद्ध शिक्षा मंत्री और अल्प्संखियक मामलों के मंत्री को लिखित शिकायत भी की है. मगर सेकुलर भारत के महान सेकुलर वामपंथी सरकार की 'अधोगति की सीमा' तो देखो -सभी चुप हैं . और तो और भारत के बडबोले सेकुलर मिडिया की 'बुर्कादत्त' और पर्सून वाजपाई भी मुस्लिम सुपारी मुंह में दबाए बैठे हैं.चलो कौम- नष्टों की तो राजनैतिक मजबूरी हो सकती है मगर इन सेकुलर मिडिया वालों की क्या मजबूरी है यह समझ के बाहर है. ज़ाहिर है इनकी चुप्पी तालिबानी सोच को बढ़ावा देने वाली मदरसा स्टुडेंट युनियन्ज़ के होसले बुलंद करने में घी का काम करेंगी.
बाकि वामपंथियों का सेकुलर मुखौटा तो 'तसलीमा नसरीन पहले ही उतार ले गई हैं.
इन सेकुलर शैतानों की 'गांधीवादी-दंडवत-दोनों गाल चांटे खाने को तैयार रखने ' की नीति और नियति का ही परिणाम है की आज केरल में सरे आम 'शरियत अदालतें लगने लगी हैं. एक अध्यापक का तो महज़ इस लिए 'हाथ ही काट डाला की उसने मुहम्मद पर कोई सवाल करने की जुर्रत कर डाली. फ़्रांस और बेल्जियम में बुर्के के प्रतिबन्ध पर हमारा सेकुलर प्रेस खूब टी आर पी चमका रहा है और मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकार का रोना रो रहा है. अब हमारे देश में हम अपने नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर तो चुप्पी साधे बैठे हैं और विदेशों में इनके हनन पर गला फाड़ फाड़ कर चिल्लाने लगते हैं... यह दोगला आचरण कब तक चलेगा मेरे भाई....
अफगानिस्तान में हाल ही में भारतीय अधिकारियों और डाक्टरों की हत्या करने वाले आतंकी ' बुर्के' में ही आए थे.