बुधवार, 19 मई 2010

मानवाधिकार -आतंकी जेहादिओं की तूरूप का पत्ता .....

पश्चिमी देशों के अपने बनाये मानवाधिकार ही अब उनके गले की फाँस बनते जा रहे हैं मानचेस्टर में बम धमाके की साजिश में संलिप्त अलकायदा के दस पाक आतंकी पकडे गए. उन्हें पाक प्रत्यर्पण का फैसला किया गया. आठ आतंकी तो स्वेच्छा से पाक वापिस जाने को राज़ी हो गए लेकिन एक आबिद नसीर व् एक अन्य आतंकी ने याचिका दाखिल कर न्यायालय से गुहार लगाई की उन्हें पाक न भेजा जाये क्योंकि पाक में उन्हें प्रताड़ित किया जाएगा . पाक का मानवाधिकार रिकार्ड बहुत खराब रहा है इस लिए उन्हें राहत दे दी गई.
प्रसिद्ध पत्रकार डगलस मूरे ने पश्चिमी देशों की जनविरोधी इस मानवाधिकार नीति को धिक्कारते हुए लिखा है की अलकायदा के आतंकी पहले तो 'जेहाद जेहाद जेहाद ' की रट लगाते हैं और जब पकडे जाते हैं तो मानवाधिकार को तुरुप के पत्ते की भांति इस्तेमाल कर अपनी जान बख्शने की गुहार लगाते हैं .ब्रिटेन की रक्षा एजेंसियां अभी भी नसीर मियां और उसके साथी को देशवासिओं के लिए बहुत बड़ा खतरा मानते हैं. पत्रकार ने एक 'यक्ष प्रश्न' उठाया है - क्या एक आतंकी के मानवाधिकार ब्रिटिश नागरिकों की जान ओ माल से ज्यादा महत्व रखते हैं ?
आतंक के विरुद्ध ' महाभारत ' छेड़ने का दावा करती हमारी सेकुलर सरकार तो इस अंतर्राष्ट्रीय महायुद्ध में 'शिखंडी ' का रूप धारण किये नज़र आ रही है, जिसका एक मात्र निशाना अपना निजी शत्रु विपक्ष रुपी भीष्मपितामह ही है. कसाब को फांसी की सजा के बाद अब इन्हें यह चिंता सताने लगी है. की 'अफज़ल गुरु' के भूत से खुद को कैसे बचाया जाये. झट से आन्तरिक सुरक्षा के ठेकेदार चिदम्बरम जी ने ,फिर से शीला जी को स्मरण पत्र भेजा की अफज़ल की फाईल पर 'तुरंत' टिपणी भेजें . पहले तो शीला जी सकपका गई अरे कौन अफज़ल ? फिर पलटी मारी और राज्यपाल को फांसी की सिफारिश के साथ साथ कानून व्यवस्था को खतरे की चेतावनी भी दे डाली. जिस सरकार ने देश के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को अमल में लाने में ६ साल बीता दिए की कहीं मुस्लिम वोट बैंक का दिवाला न पिट जाये. क्या देश का सारे का सारा मुस्लिम समाज देश द्रोही है, जो देश के लोकतंत्र के मंदिर लोकसभा पर हमले के दोषी को सजा देने पर जेहाद छेड़ देगा .
अफज़ल को बचाने के दिग्गी मियां -वोही हमारे राजकुमार राहुल बाबा के राजनैतिक गुरु , दिग्विजय सिंह ने दस बहाने गढ़े -कहने लगे अफज़ल से पहले तो ढेर सारे फांसी के केस लंबित पड़े हैं , २८ में से अफज़ल मियां तो २२ वी कतार में हैं ,जब नंबर आयेगा लटका देंगे . अब कसाब को फांसी की सज़ा के बाद जनता का दवाब है की उसे जल्द से जल्द फांसी दो, और विपक्ष के हाथ भी एक मुद्दा लग गया तो दिग्गी मियां की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई. और शीला को भी जवाब देते नहीं बन रहा की ६ साल अफज़ल का केस कहाँ और क्यों छुपा रखा? अब कसाब को लटकाने के लिए दिग्गी मियां की २८ मील लम्बी लाईन को कैसे तोडा जायेगा.
हमारे दिग्गी मियां के पास एक और बहाना भी है... भई देश में कोई ज़ल्लाद ही नहीं -सभी पद खाली पड़े हैं.. सरकार पहले तो रिक्त पदों के लिए आवेदन आमंत्रित करेगी और इस के लिए देश के सभी राष्ट्रीय समाचार पत्रों में विज्ञापन दिए जाएंगे .अरे हाँ ! अभी तो ज़ल्लाद के पद की योग्यताएं भी निर्धारित नहीं हुईं - अँगरेज़ मुए बिना योग्यता के ही ज़ल्लाद को १५० रूपए पगार देते रहे. अब सेकुलर सरकार से बिना योग्यता के कोई पगार पा सकता है क्या ? सरकारी मुलाज़म है कोई एम् पी. एम्. एल. ऐ या मुख्या मंत्री राबड़ी ...थोड़े है जो सरकारी खजाने को मलाई की तरहां चाट जाये.
शीध्र ही सोनिया जी चिदम्बरम जी की अध्यक्षता में आठ कबिनेट मंत्रिओं की एक कमेटी का गठन करेंगी जो ज़ल्लाद की योग्यताओं का अध्ययन कर अपनी सिफारिश देगी. तब जा कर ममता जी की गाडी आगे बढ़ेगी और तब तक बंगाल के चुनाव भी निपट जायेगे . इस काम को देश के कानून और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकारों के तराजू पर पूरी तरहां माप तोल कर किया जायेगा.
शायद मंसूर अजहर की तरहां अफज़ल के लिए भी कोई 'पुष्पक विमान' कंधार की उड़ान भर जाये और अल्पसंख्यक वोट बैंक लुटते लुटते बच जाये.