शनिवार, 10 अप्रैल 2010

हज सब्सिडी की राजनीती

केंद्र सरकार हज सब्सिडी को लेकर कुछ कुछ चिंतित सी नज़र आने लगी है.- २००८ में यह सब सिडी बढ़ते बढ़ते ८२६ करोड़ के आंकड़े को पार कर गई.अब विदेश मंत्रालय इसमें प्रति वर्ष १०% की कमी लाने की सोच रहा है. हमारे संविधान की यह सपष्ट अवधारणा है कि धरम और राज्य बिलकुल अलग हैं और इसी लिए हमारी सरकार धरम निरपेक्ष सरकार होने का दम भरते नहीं अघाती. एक धर्म निरपेक्ष सरकार द्वारा वोट कि राजनीती के चलते अल्पसंख्यकों को लुभाने के उद्देश्य से कर दाताओं कि खून पसीने कि कमाई को इस प्रकार लुटाना निहायत ही शर्मनाक बात है. क्या किसी इस्लामिक मुल्क में हज यात्रिओं को ऐसी और इस स्तर की आर्थिक सुविधाएं प्राप्त हैं.
निस्संदेह इस्लाम में हज यात्रा का अपना एक महत्त्व है. लेकिन कुरआन में यह भी स्पष्ट तौर पर दर्ज है कि हज यात्रा का खर्च हाजी या उसके रिश्तेदार द्वारा ही किया जाये. आर्कोट के प्रिंस नवाब मुह्हम्मद अब्दुल अली के अनुसार यह शरियत क़ानून के खिलाफ है और हाजी को किसी प्रकार कि आर्थिक सहायता नहीं लेनी चाहिए . हज विश्व कि सबसे बड़ी मज़हबी पवित्र यात्रा मानी जाती है, दूसरा स्थान केरल कि शब्रिमाल यात्रा का है और इसके लिए कोई सरकारी आर्थिक सहायता नहीं दी जाती. २००९ में सउदी अरब सरकार ने भारत से १,६०,४९१ यात्रिओं को हज कि अनुमति प्रदान की, जिसमें से मात्र ४५,४९१ यात्री ही शर्यत के नियमों के अनुसार अपने खर्चे पर हज को गए बाकी १,५०,००० यात्रिओं ने सरकारी आर्थिक सहायता पर ही यह यात्रा करना मुनासिब समझा. इन यात्रिओं ने हज यात्रा पर केवल १६०००/- खर्च किये बाकी के ४५०००/- सरकार ने मुहैया करवाए .
मलेशिया जहाँ मुसलामानों की जनसंख्या सब से अधिक है और आर्थिक स्थिति भी काफी बेहतर है, वहां भी हज यात्रिओं की किसी प्रकार की आर्थिक सहायता सरकार द्वारा मुहैया नहीं करवाई जाती. हज यात्रिओं के लिए एक किटी फंड की व्यवस्था है जो हज के लिए संभावित यात्रिओं द्वारा इक्कठा किया जाता है. हज यात्री अपने इस फंड में से पैसे निकलवा कर यात्रा पर चले जाते हैं. इस तर्ज़ पर ही विदेश मंत्रालय भातर में भी हज यात्रिओं के लिए इनके एक निजी फंड के जुगाड़ में है. लेकिन हज बोर्ड के मुस्लिम नेता जो इस फंड पर अपनी राजनितिक रोटियां सेकते आ रहे हैं और मुस्लिम वोटों के तलबगार दूसरे सेकुलर नेता सरकार के इस कदम के विरोध में भी उतर आए हैं.विरोध करें भी क्यों न - लोक सभा की ८० सीटें मुस्लिम वोट पर टिकी हैं. दिल्ली दरबार के दरवाज़े हज यात्रा की सब्सिडी की चाबी से ही खुलते हैं.मुस्लिम आबादी के साथ ही इस चाबी का महत्त्व भी बढ़ता ही जा रहा है.चाहे यह सब्सिडी ८२६ से बढ़ कर ८२६००० करोड़ क्यों न हो जाये.
सब सहारा अफ्रीका के बाद भारत विश्व का निर्धनतम देश है, जहाँ ४२% अर्थात ४५६ मिलियन लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर करने को मजबूर हैं. ४९% बच्चे कुपोषण के कारण अन्डर वेट हैं और २.२ मिलियन बच्चे प्रति वर्ष भूख से मर जाते हैं. कुछ वर्ष पूर्व तो इन बच्चो को कुपोषण से बचाने के लिए हमारी सेकुलर सरकार ने अपने वार्षिक बज़ट में ' २२ करोड़ की विपुल धनराशी ' रख छोड़ी थी और हज यात्रिओं के लिए उस वक्त ' मात्र १२२ करोड़ 'का प्रावधान था. बच्चों का क्या है! रोटी नहीं मिलेगी तो मिटटी से गुज़ारा कर लेंगे . एक राष्ट्रीय समाचार पत्र में गत दिनों उत्तर प्रदेश के एक गाँव में एक बच्ची की फोटो छपी जो मिटटी का ढेला खा रही थी .कुच्छ बच्चों के लीवर, किडनी,पेट और आँखों में मिटटी खाने के कारन सोजिश के दृश्य भी छापे गए.कियोंकि समाचार पत्र राष्ट्रीय था और उस पर सोनिअजी की भी नज़र पड़ती थी- फ़ौरन मंत्रिओं की एक बैठक खज़ाना मंत्री प्रणव दादा की रहनुमाई में बुलाई गई और उन्हें सोनिया जी की चिंता से अवगत करवाते हुए आदेश हुआ की फ़ौरन एक बिल का मसौदा तैयार किया जाये -गरीबों को सचमुच में रोटी का अधिकार दिया जाये. सोनिया जी ! पिछले ६३ वर्षों में बहुत से बिल और क़ानून पास हुए, लेकिन भूख से बिलखते बच्चों को रोटी का निवाला देने में कोई भी सफल नहीं हो पाया- होगा भी नहीं ! क्योंकि बच्चों की वोट नहीं होती.
मुस्लिम जनसँख्या के हिसाब से भारत विश्व का तीसरा देश है. इनकी आर्थिक स्थिति बहुत ही चिंता जनक है. शयद इनके पिछड़े पण का बहुत बड़ा कारन भी इनकी प्रगति विरोधी मज़हबी सोच है. आज की महंगाई के जमाने में जहाँ एक बच्चा पालना भी मुहाल है.-ये अभी तक अल्लाह की रहमत से चार चार बीविया और दर्ज़नों बच्चे मौला की देन मान कर जी रहे हैं एक सर्वे के अनुसार १० में से ३ मुसलमान गरीबी रेखा से नीचे है.
'घर से मस्जिद है बहुत दूर,
चलो यूं कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए !!!!!!!!!!.