शनिवार, 26 दिसंबर 2009

सुख्मृत्यु -एक वरदान या अपराध

युथ्नेजिया अर्थात सुख्मृत्यु एक अपराध या वरदान ! भारतीय कानून में सुख्मृत्यु एक अपराध है क्योंकि हमारा सारा कानूनी ढांचा ब्रिटिश पीनल कोड पर आधारित है और ब्रिटिश कानून इसाई धरम पर आधारित है. इसाई धरम में जीवन को लेने का अधिकार केवल इश्वर को है क्योंकि यह उसी का दिया हुआ वरदान है.आज भी विश्व में यह एक गहन विचार का विषय है. इसाई मत के विपरीत जाते हुए विश्व के कुछ देशों ने इच्छा मृत्यु को मान्यता दे दी है जिनमें हेदरलैंड पहला देश है जिसने ४,२००२ में, और अमरीका के प्रान्त ओरेगोन ने एक एक्ट द्वारा १९९७ में डेथ विद डिग्निटी को मान्यता दे दी . यु. के . के डॉ;आर्थर ने एक बच्चे को कोडीन की डोज़ दे कर सुख मृत्यु सुला दिया क्योंकि बच्चा जन्म से ही डाउन सिंड्रोम से पीड़ित था -डॉ; पर हत्या का केस चलाया गया किन्तु कोर्ट ने उसे बरी कर दिया कियोंकि यह सब दया भाव से किया गया था. कोलम्बिया के डॉ; डेथ (डॉ;जैक ) ने तो, १९९० तक , असाध्य रोगों से पीड़ित १३० लाइलाज रोगीओं को इच्छा मृत्यु में मदद की. सुख मृत्यु के लिए तीन प्रकार की प्रक्रियाए प्रयोग में ली जाती हैं - एक्टिव ; इसमें जान लेवा इंजेक्शन लगा कर मौत की नींद सुला दिया जाता है . दूसरा है पैस्सिव - रोगी को जीवित रखने के लिए लगाये गए सपोर्ट सिस्टम को हटा लिया जाता है. तीसरे डबल इफेक्ट - में रोगी को दर्द निवारक दवाओं की हैवी डोज़ दे कर चिर निद्रा में सुला दिया जाता है.
पिछले ३६ साल से एक बलात्कार पीड़ित नर्स हस्पताल में असहाए और दयनीय हालत में जीवन मृत्यु से जूझ रही है. उसका यह हाल करने वाला दोषी ७ साल की सजा काट कर आज़ाद भी हो गया .इच्छा मृत्यु कानूनन जुर्म के चलते इसे ऐसे अपराध की सजा मिल रही है जो उल्टा इसके साथ ही हुआ है. अहिंसा के मसीहा महात्मा गाँधी जी का दया मृत्यु के प्रति दृष्टिकोण क्या था ! इसका अंदाज़ा इस का घटना से भली भांति लगाया जा सकता है. साबरमती आश्रम में एक बछड़ा एक लाइलाज बीमारी से पीड़ित असहनीय पीड़ा से गुज़र रहा था. गांधीजी ने डाक्टर से इसे तुरंत दया मृत्यु दे कर पीड़ा मुक्त करने का आदेश दिया. कुत्तों के प्रति विशेष सहानुभूति रखते हुए मेनका गाँधी ने स्ट्रे एनिमल कण्ट्रोल एक्ट (डॉग) २००१ में रैबिस पीड़ित पागल कुत्तों के लिए विशेष तौर पर दया मृत्यु का प्रावधान करवाया. रैबिस पीड़ित कुत्ते के लिए तो दया मृत्यु लेकिन कुत्ते के काटे रैबिस पीड़ित मानव के लिए येही राहत कानूनन जुर्म ! लोक हित में इच्छा मृत्यु वैदिक दर्शन का एक मौलिक सिधांत रहा है. श्रावस्ती के राजा विद्दभ ने कपिलवस्तु पर आक्रमण कर प्रजा का संहार करना शुरू कर दिया तो संत महानाम ने जो की राजा के गुरु भी थे ,उनसे गुरुदाक्षिना के रूप में नरसंहार रोकने की मांग की. राजा ने शर्त रखी कि जितनी देर वे तालाब के जल में रहेंगे उतनी देर नरसंहार नहीं होगा. संत महानाम ने लोक हित में सदैव के लिए जल-समाधी ले कर आत्मोत्सर्ग कर दिया.
इसाई धर्म जीवन को इश्वर का उपहार मानता है.,तो वैदिक दर्शन इसे अपने पूर्व जन्मों का प्रतिफल और मृत्यु को परमात्मा द्वारा दिया गया उपहार. यदि मृत्यु का पूरे पूरे होशोहवास में वर्ण किया जाये तो जन्म जन्म के बंधन से मुक्त हो कर मोक्ष को पाया जा सकता है. वैदिक धर्म जीवन को अमृत कि खोज मानता है और मृत्यु से गुजर कर ही अमृत कि उपलब्धि संभव है. महाकवि कालिदास ने ठीक ही कहा है कि 'वास्तव में जन्म एक दुर्घटना है, जबकि मृत्यु ही शाश्वत सत्य है.'....इसी लिए जीवन को एक यात्रा और मृत्यु को इस यात्रा के एक पडाव कि भांति माना गया है. मृत्यु होते ही आत्मा नए जीवन कि तलाश में प्रयत्न शील हो जाती है. सामान्य आत्माएं किसी भी सुलभ प्राप्त योनी में प्रवेश कर जन्म पा जाती हैं. कठिनाई देव आत्माओं और प्रेत आत्माओं को होती है. देव आत्माएं श्रेष्ट योनी कि खोज में, और प्रेत आत्माएं किसी अधम योनी कि खोज में भटकती रहती हैं.
वैदिक दर्शन में विशवास रखने वाले इच्छा मृत्यु को एक वरदान मान कर चलते हैं. महाभारत के युग पुरुष भीषम पितामाह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था. हठयोग से उन्होंने सुख दुःख पर विजय प्राप्त कर ली थी. वान शैया पर ६ माह तक उत्तरायण योग कि प्रतीक्षा कि और शुभ लग्न में अपनी इच्छा से मृत्यु लोक को प्रस्थान किया.धरमराज के अर्धांश महापुरुष विदुर ने भी अपनी इच्छा से प्राण त्यागे ! पांडवों ने तो सदेह बैकुंठ धाम कि ओर प्रस्थान कर इच्छा मृत्यु को ग्रहन किया. वैदिक धरामाव्लाम्भी जहाँ जीवन को एक उत्सव मानते है वहीँ मृत्यु को महोत्सव. सैंकड़ों वर्ष कि गुलाम मानसिकता का ही परिणाम है कि आज़ाद भारत में एक कुत्ते को प्राप्त 'दया मृत्यु' का अधिकार एक मनुष्य को नसीब नहीं है.

सोमवार, 21 दिसंबर 2009

भूरू -कालू की लालू लीला

भूरू ,भूरी और कालू पूरे मोहल्ले की शान हैं क्योंकि सारा मोहल्ला उन्हें बिना पगार का चौकीदार मानता है. भूरी फिर से पेट से है. श्रीमती जी को बेसब्री से उसके प्रसव दिवस का इंतज़ार है, जब भूरी फिर से ६-७ पिल्लों को जन्म देगी . सुबह -शाम चबूतरे पर भूरी के लिए दूध का कटोरा रखा मिलता है. देवीजी बिना नागा तीनो के लिए दूध, ब्रेड और वह भी मलाई लगी हुई, परोसना नहीं भूलती . यह बात अलग है की हमें ब्रेड सूखी ही मिलती है . भूरी और भूरू में एक दूरारे की प्रति गहरा लगाव है. जब भूरू खा रहा है तो भूरी एक आज्ञाकारी पत्नी की भांति एक ओर कड़ी इंतज़ार करती है -उसकी तृप्ति के उपरांत ही बचे खुचे पर संतुष्ट रहती है.अब भूरी खाती है और भूरू चुप चाप खड़ा देखता है -अपने आने वाले बचों की खातिर ..... एक कालू जी हैं की उन्हें कुछ भी डालो -भूरू महाशय चट कर जाते है . देवीजी का ऐसा मानना है की बेचारे कालू को कम दिखाई देता है.पर यह कसर शनिवार को पूरी हो जाती है जब हर कोई एक से बढ कर एक पकवान कालू जी की सेवा में लिए खड़ा होता है. और कालू महाशय का नखरा भी सातवें आस्मां पर होता है. शेसी घी से चुपड़ी रोटी पर भी नाक नहीं धरते.
जब से मेनकाजी का वरदहस्त मिला है ! गली के आवारा कुतों को मारना तो बहुत दूर की बात है,कोई प्रताड़ित भी नहीं कर सकता. स्ट्रे एनिमल कंट्रोल रूल्स (डॉग) २००१ के तैहत आवारा कुत्तों को सम्पूर्ण संरक्षण प्राप्त है. कुत्तों पर अत्याचार के दोषी को अब ५ वर्ष तक कारावास या जुर्माना अथवा दोनों की सजा हो सकती है .इस अधिनियम के अंतर्गत जहाँ आवारा कुत्तों को मारने पर प्रतिबन्ध लगा है वहीँ सभी कुत्तों की नसबंदी का भी प्रावधान है. सभी नगर निगमों को निर्देश दिया गया है की नगर निगम कमिश्नर की अध्यक्षता में ६ सदस्य एक कमेटी गठित की जाये जिसमें एक पशु चिकित्सक के अतिरिक्त जन स्वस्थ्य ,पशु भलाई विभागों और पशु प्रेमी सवयम सेवी संस्थाओं के
नुमैन्दे हों . यह कमेटी कुत्तों की देख भाल, गिनती,टीकाकरण के अतिरिक्त इनकी बढती आबादी पर अंकुश लगाने के कार्यक्रम संचालित करे जिसमे इनकी नसबंदी प्रमुख कार्य है. रैबिस से पीड़ित पागल कुत्तों के लिए इस एक्ट में दया मृत्यु का प्रावधान है. जिसे डाक्टर की देख रेख में उक्त कमेटी द्वारा कार्यान्वित किया जायगा . इन पागल कुत्तों द्वारा काटे जाने के सबसे अधिक शिकार बच्चे और कूड़ा बीनने वाले निर्धन लोग होते है जिनके पास एंटी रैबिस टीका लगवाने के भी पैसे भी नहीं होते. ऐसे में कोई गरीब यदि रैबिस का शिकार हो जाये तो किसी एक्ट में ऐसे अभागे को दया मृत्यु का भी प्रावधान नहीं है.
नगर निगमों की अफसरशाही ने उक्त एक्ट पर तुरंत आंशिक अमल करते हुए आवारा कुतों को मारना तो बंद कर दिया किन्तु इनकी नसबंदी का काम बिलकुल भूल ही गए . परिणाम हमारे सामने है -बागों के शहर पटियाला की ५ लाख आबादी पर जहाँ आवारा कुत्ते २० हज़ार हो गए वहीँ देश की राजधानी दिल्ली में ती कुत्तों की यह संख्या हमारे शहर की आबादी ५ लाख को भी पर कर गई. अब तो दिल्ली हाई कोर्ट ने कुत्ता प्रेमिओं की एक याचिका पर दिल्ली नगर निगम को निर्देश जारी किये हैं की कुत्तों के लिए ऐसे स्थान सुरक्षित किये जाएँ जहाँ पर ये ये लोग कुत्तों को भोजन आदि बिना रोक टोक परोस सकें .
मेनका जी का कुत्ता संरक्षण अधिनियम और निगम अधिकारिओं का कुत्तों की नसबंदी के प्रति उदासीन रवैया बदस्तूर जारी है. आवारा कुत्तों का हम दो हमारे छे का खेल भी बदस्तूर जारी है. अधिकारिओं का उदासीन रवैया और कुत्तो की लालू लीला यदि इसी प्रकार कुछ वर्ष यूँ ही चलती रही तो वेह दिन दूर नहीं जब प्रतियेक दिल्ली वासी के पीछे एक आवारा कुत्ता खड़ा दुम हिला रहा होगा.....कहते हैं ! धरम राज युधिष्टर के श्वान ने अपने मालिक का साथ स्वर्गधाम तक निभाया था

शनिवार, 19 दिसंबर 2009

शंख नाद .....एक अपराध

धरम क्षेत्र कुरुक्षेत्र की जिस कर्म भूमि से भगवान श्री कृष्ण ने अपने पंच्जय शंख से पापी और मानवता के अप्रराधिओं के विरुद्ध धर्मपरायणता का उदघोश किया था, उसी कर्म भूमि पर शंख बेचना ,रखना या शंख से पूजा करना अपराध हो गया है .विल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट १९७२ की आड़ में कुछ वन्य जीव संरक्षण के ठेकेदार इसे अपराध घोषित कर हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ कर रहे हैं. उक्त एक्ट के तैहत शंख सिपिओं के प्रचालन पर रोक लगाई गई थी. हरयाणा की एक पीपल फार एनिमल संस्था के नरेश कदयाल की पैहल पर २ शंख विक्रेताओं को वाइल्ड लाइफ विभाग द्वारा बंदी बना लिया गया.
१६२ वर्ष पूर्व भी कुरुक्षेत्र के ही एक अँगरेज़ पुलिस अधिकारी ने पिहोवा के एक पुजारी पर मंदिर में शंख बजाने के जुर्म में १०० रूपए जुर्माना किया था.जब मामला लुधिआना कोर्ट के एक अँगरेज़ जज के संज्ञान में लाया गया तो पुजारी की धार्मिक भावनाओं को देखते हुए जुरमाना खारिज कर दिया गया. उक्त एक्ट की एक अन्य धरा के जून २००१ में लागू होने पर भी श्री लंका से आए एक जहाज से ५ लाख शंख ज़ब्त कर लिए गए. क्योंकि जहाज में शंख एक्ट लागु होने से पूर्व लादे गए थे इस लिए दोषिओं को बरी कर दिया गया. देश भर में शंख, सीपिओं के व्यापार में लगभग १५ लाख लोगों की आजीविका चलती है. और केवल इंडियन ओशन से ही २५० किस्म के शंख निकाले जाते हैं.
शंखो के व्यापार पर रोक विश्व वन्य जीव संरक्षक संस्थाओं के अनुरोध पर इस लिए लगाई गई थी की योरपियन देशों में सी फ़ूड के रसिक लोगों द्वारा बहुत अधिक मात्रा में शंख सीपिओं का समुद्र मंथन होने लगा था जिस कारन इन समुद्री जीव जंतुओं के अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया था. जबकि भारतीओं में सी फ़ूड का प्रचालन नाम मात्र ही है. प्राचीन मान्यताओं के चलते हमारे यहाँ तो शंक का महत्व एक धार्मिक धरोहर के रूप में ही अधिक है. अनादी काल से हिन्दू समाज शंख की आराधना पूरी श्रधा और भक्ति से करता आ रहा है. शंख से धन की देवी लक्ष्मी को प्रसन्न किया जाता है. दक्षिणावर्ती पांचजन्य शंख भगवान विष्णु के कर कमलों की शोभा हैं और यह बहुत ही दुर्लभ शंख लाखों शंखों में एक ही पाया जाता है. हिन्दू समाज शंख को अपने घर , कार्य, व् पूजा स्थल पर एक शुभ्यंकर प्रतीक के रूप में सजाते हैं. सभी देवी देवताओं की आराधना के लिए भिन्न भिन्न प्रकार के शंखों का चयन किया जाता है. और हमारे शास्त्रों में इस का विधि सम्मत विधान है.
महाभारत के युद्ध का उद्दघोश भगवान श्री कृषण ने अपने पांचजन्य शंख की उत्कल ध्वनि से ही किया था इसके पश्चात् युद्ध की घोषणा के रूप में महान धनुर्धर अर्जुन ने देवराज इंद्र से प्राप्त देवदत्त शंख बजाया. भीम ने विशाल पांडर नामक शंख से भयंकर गर्जना की. युधिष्टर ने विजय का प्रतीक -अन्नंत विजय शंख , नकुल ने शुभ्यंकर प्रतीक सुघोष शंख और सहदेव ने सबसे सुन्दर मणिपुष्पक शंख से युद्ध में विजयी भाव की कामना की. अन्य महाराथों ने भी अपने अपने शंख बजा कर युद्ध की घोषणा कर दी. वास्तव में शंख नाद ही युद्ध भूमि में एक योधा की पहचान था. शंख का धार्मिक महत्व महाभारत काल से भी पूर्व का है और हिन्दू समाज में इसे धरम के प्रतीक रूप में जाना जाता है.
जानवरों पर हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध झंडाबरदार संस्थाओं के इन ठेकेदारों को शंखो और सीपिओं में पल रहे कीड़ों की तो इतनी चिंता सता रही है.क्या इन्हें मज़हब के नाम पर तडपा
तडपा कर मारे जाने वाले जानवर दिखाई नहीं देते.

शनिवार, 5 दिसंबर 2009

जन्नत की हकीकत -कासमी,कसाब और ९ ताबूत.

जे जे अस्पताल में एक साल से सड रही कसाब के ९ साथिओं के शवों में असहनीय दुर्गन्ध पैदा हो गई है. अस्पताल के शव कक्ष में तैनात कर्मचारी दिन रात इन शवों को संजोने में व्यस्त हैं. जब तक कोर्ट से कोई आदेश नहीं आ जाता इन शवों को दफन भी नहीं किया जा सकता. शव कक्ष का तापमान ६ डिग्री से कम बनाये रखने के इलावा जब इन्हें कक्ष के भीतर जाना पड़ता है, टो इनकी जान पे बन आती है. भयंकर दुर्गन्ध के कारन सर चकरा जाता है और बेहोशी छ जाती है कोर्ट में हो रही देरी का संताप अस्पताल के ये कर्मचारी भोग रहे हैं.सड रहे शवों से पैदा हुई दुर्गन्ध के कारन किसी संक्रामक बीमारी का भैय अलग सत्ता रहा है.
कसब केस की सुनवाई कर रहे जज साहेब के सब्र का बाँध एक साल बाद ही सही आखिर टूट ही गया. जब कसाब के वकील अब्बास कासमी ने कसब और उसके ९ साथी जेहादीयों के हाथों
मरे गए पीड़ितों के सम्बन्धियो की गवाहियो के हलफनामे कबूल करने में आना कानी की. कासमी के कारन ही यह केस एक साल से लटक रहा है. कोर्ट में झूठ बोलने और नित नई अड़ंगेबाजी करने के इलज़ाम में जज साहेब ने कासमी को केस से बे दखल कार दिया.
मुंबई हमले से पहले कसब और उसके ९ साथिओं को उनके पाकिस्तानी आकाओं ने कुरआन का जेहादी पाठ पढाया था जैसा की कासब ने भी अपने एक बयां में माना है, कि उसे जन्नत का ख्वाब दिखाया गया था - अर्थात 'जो मुस्लमान इस्लाम के लिए जेहाद में मारा जाता है वेह सदा के लिए मृगनयनी अप्सराओं के साथ जन्नत में आंनंद भोगता है. अब कासब को जन्नत कब मिलेगी यह तो नहीं मालूम, पर उसके ९ साथी बंद ताबूतों में दोज़क कि दुर्गन्ध ज़रूर फैला रहे हैं और मरने के बाद भी कासमी जैसे जाहिल वकीलों की हरकतों के कारन जे जे अस्पताल के शव कक्ष में तैनात कर्मचारिओं का जीवन भी नरकतुल्य बना छोड़ा है.
कसब केस का जल्द निपटारा तभी संभव है यदि केस की सुनवाई जे जे अस्पताल के शव कक्ष में ९ जेहादिओं की जन्नत के बीच की जय. बकौल ग़ालिब 'हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन, दिल के बहलाने को ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है.